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मन का हद

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हद है हद की, हदों के आगे। मन अपना इसके भी आगे। पर वो भी तो हद है। तुम मत रहना मन की हद में खोल दो सारे मन के धागे।

तुम शब्द हो कोई

 मुझे अधपके वाक्य पसंद नहीं, इसलिए उपयुक्त शब्दों की तलाश में रहता हूँ।  सटीक शब्द ही वाक्य को वजन देते हैं,  सटीक शब्द ही वाक्य को जीवन्त बनाते हैं,  सटीक शब्द ही वाक्य को परिपक्व बनाते हैं।  तुम शब्द हो कोई,  जिसके अक्षरों का मुझे पता नहीं। शब्द के अर्थ से संभवतः अवगत हूँ मैं,  पर उसे अक्षरों में ढालने का सामर्थ्य नहीं। -ज्ञानेश