शायद
तुम्हारी खामोशी में कितना शोर है,
मेरी पुकार भी तुम तक पहुंच नहीं पा रही।
तुम्हारे इरादे के किवाड़ में कितना जोर है,
मेरी अथक कवायद भी इसे खोल नही पा रही।
लेकिन मेरी धड़कनों में ये कैसी होर है,
तुम्हारे आए किसी ख़त की आहट है शायद।
ये 'शायद' भी कितना बेजोड़ है,
इसमे बसता हर समस्या का तोड़ है।
Comments